फग्गन 33 साल, तोमर 15 साल, विजयवर्गीय 10 साल बाद लड़ेंगे विधानसभा चुनाव, 3 सांसदों को पहली बार मौका

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी का उन सीटों पर लगातार फोकस है, जहां उसे पिछले चुनाव में हार मिलती आई है. सोमवार को पार्टी ने एक बार फिर 39 सीटों के उम्मीदवार घोषित किए. इनमें चौंकाने वाले नामों को शामिल किया है और विधानसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया है. तीन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को कैंडिडेट बनाया गया है. इसके अलावा, सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, राव उदय प्रताप सिंह, रीति पाठक को भी टिकट मिला है. संगठन के बड़े चेहरे कैलाश विजयवर्गीय एक बार फिर मध्य प्रदेश की एक्टिव पॉलिटिक्स का हिस्सा होंगे. इन सभी चेहरों को टिकट देकर पार्टी ने बड़ा संदेश दिया है.जबलपुर से सांसद राकेश सिंह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. उन्हें बीजेपी ने जबलपुर पश्चिम से टिकट दिया है. दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरेंगे. पार्टी ने उन्हें नरसिंहपुर से टिकट दिया है. सीधी से सांसद रीति पाठक भी पहली बार विधायक का चुनाव लड़ेंगी. उन्हें सीधी से टिकट मिला है. जबकि, सतना से सांसद गणेश सिंह पहले भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. गणेश को सतना विधानसभा सीट से टिकट मिला है. होशंगाबाद से सांसद राव उदय प्रताप सिंह भी पहले विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. पार्टी ने उन्हें गाडरवारा टिकट दिया है.दिलचस्प बात यह है कि आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते 33 साल बाद विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. फग्गन को निवास सीट से टिकट मिला है. इससे पहले निवास सीट से उनके भाई राम प्यारे चुनाव लड़े थे और हार गए थे. फग्गन 6 बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद रहे. अभी मंडला सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस बार पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में उतारने का फैसला लिया है. उन्होंने 1990 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. वो 1992 तक विधायक रहे. 2012 में फग्गन राज्यसभा के लिए चुने गए थे. कुलस्ते 1999 से से 2004 तक वाजपेयी मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे. फग्गन अब तक 2019, 2014, 2004, 1999, 1998, 1996 का लोकसभा चुनाव जीते हैं. 2009 में वो हार गए थे. कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम जीते थे.
नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना जिले की दिमनी सीट दी गई है. इस सीट को तोमर की पसंदीदा माना जाता है. यहां से अब तक उनके करीबी चुनाव लड़ते आए हैं. इस बार वो खुद लड़ेंगे. 'मुन्ना भैया' के नाम से चर्चित तोमर ग्वालियर से दो बार विधायक रह चुके हैं. मुरैना जिले के ओरेठी गांव में जन्म हुआ. इमरजेंसी के वक्त तोमर जयप्रकाश नारायण के देशव्यापी आंदोलन में शामिल हुए. जेल गए और राजनीति में सक्रियता बढ़ा दी. सबसे पहले एसएलपी कॉलेज के अध्यक्ष बने. उसके बाद पहली बार ग्वालियर विधानसभा से चुनाव लड़े, लेकिन बाबू रघुवीर सिंह से 600 वोटों से हार गए. इस चुनाव के बाद नरेंद्र सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1998 में वो ग्वालियर विधानसभा सीट से चुनाव जीते. 2003 में भी इसी सीट से चुनाव जीतकर उमा भारती मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाए गए. उसके बाद वो बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में रहे. 2009 में पहली बार सांसद बने थे तोमर
2009 में पार्टी ने तोमर को मुरैना लोकसभा सीट से टिकट दिया और वो जीतकर संसद पहुंचे. 2014 में ग्वालियर लोकसभा सीट से अशोक सिंह को चुनाव हराया. 2019 में तोमर ने एक बार फिर मुरैना से जीत हासिल की. पिछले महीने बीजेपी ने तोमर को चुनाव प्रबंधन कमेटी का चेयरमैन बनाया है. ऐसे में इलेक्शन मैनेजमेंट का पूरा जिम्मा भी उनके ही पास है. तोमर को सीएम पद का दावेदार भी बताया जाता है.
कैलाश विजयवर्गीय: 6 बार विधायक चुने गए
बीजेपी ने कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर-1 से टिकट दिया है. विजयवर्गीय 2015 के बाद प्रदेश की राजनीति में सक्रिय देखे जाएंगे. विजयवर्गीय 1990 से लगातार 6 बार विधायक चुने गए. वो लगातार 12 साल तक मंत्री रहे. 2003 में सबसे पहले उमा भारती, फिर बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए. कैलाश ने साल 1990 में इंदौर की चार नंबर विधानसभा सीट से टिकट लड़ा और जीत हासिल की. उसके बाद 1993, 1998 और 2003 में अपने गृह क्षेत्र दो नंबर सीट से विधायक रहे. संगठन ने 2008 और 2013 में विजयवर्गीय को महू विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और जीत हासिल की. कैलाश ने 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था. 2018 में उनके बेटे आकाश इंदौर-3 सीट से चुनाव जीते थे.