हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' से 10 चुनिंदा रूबाइयां
अपने सीधे सरल शब्दों को कविता में पिरोकर साहित्य रसिकों को 'काव्य रस' देने वाले हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरिवंश राय ने पूरे साहित्य जगत् पर अपनी अलग और अमिट छाप छोड़ी।
जिन व्यक्तियों की रुचि साहित्य या काव्य में न भी रही हो, उन्होंने भी अपने जीवन में कभी न कभी 'मधुशाला' की रुबाइयाँ ज़रूर गुनगुनायी होंगी। प्रेम, सौहार्द और मस्ती की कविताओं के ज़रिये हरिवंशराय बच्चन हमेशा से कविता-प्रेमियों को अपनी ओर आकृष्ट करते आए हैं।
सीधे और सरल शब्दों में मन के भीतर उतर जाना उन्हें अच्छे से आता है। 'मधुशाला', 'जो बीत गयी सो बात गयी', 'अग्निपथ' और 'इस पार उस पार' जैसी कविताएं आज भी जब किसी मंच पर पढ़ी जाती हैं तो श्रोता मुग्ध हुए बिना नहीं रह पाते।
'मधुशाला' आज अपने 68 वें संस्करण में है और इससे ज़्यादा लोकप्रिय किताब शायद ही हिन्दी काव्य में कोई दूसरी होगी। पेश है 'मधुशाला' से चुनिंदा रूबाइयां-
जलतरंग बजता, जब चुंबन
करता प्याले को प्याला
वीणा झंकृत होती चलती
जब रुनझुन साक़ीबाला
डांट-डपट मधुविक्रेता की
ध्वनित पखावज करती है
मधुरब से मधु की मादकता
और बढ़ाती मधुशाला
हाथों में आने से पहले
हाथों में आने से पहले
नाज़ दिखायेगा प्याला
अधरों पर आने से पहले
अदा दिखायेगी हाला
बहुतेरे इन्कार करेगा
साक़ी आने से पहले
पथिक, न घबरा जाना पहले
मान करेगी मधुशाला
यज्ञ-अग्नि-सी धधक रही है
यज्ञ-अग्नि-सी धधक रही है
मधु की भट्टी की ज्वाला
ऋषि-सा ध्यान लगा बैठा है
हर मदिरा पीने वाला
मुनि-कन्याओं-सी मधुघट ले
फिरतीं साक़ी बालाएं
किसी तपोवन से क्या कम है
मेरी पावन मधुशाला
बार-बार मैंने आगे बढ़...
बार-बार मैंने आगे बढ़
आज नहीं मांगी हाला
समझ न लेना इससे मुझको
साधारण पीनेवाला
हो तो लेने दो ऐ साक़ी
दूर प्रथम संकोचों को
मेरे ही स्वर से फिर सारी
गूंज उठेगी मधुशाला
कर ले कर ले कंजूसी तू
कर ले कर ले कंजूसी तू
मुझको देने में हाला
दे ले, दे ले तू मुझको बस
यह टूटा-फूटा प्याला
मैं तो सब्र इसी पर करता
तू पीछे पछतायेगी
जब न रहूंगा मैं, तब मेरी
याद करेगी मधुशाला
उस प्याले से प्यार मुझे जो
उस प्याले से प्यार मुझे जो
दूर हथेली से प्याला
उस हाला से चाव मुझे जो
दूर अधर-मख से हाला
प्यार नहीं पा जाने में है
पाने के अरमानों में
पा जाता तब, हाय, न इतनी
प्यारी लगती मधुशाला
नहीं चाहता आगे बढ़कर
नहीं चाहता आगे बढ़कर
छीनू औरों का प्याला
नहीं चाहता, धक्के देकर
छीनूं औरों का प्याला
साक़ी मेरी ओर न देखो
मुझको तनिक मलाल नहीं
इतना ही क्या कम आंखों से
देख रहा हूं मधुशाला !
बूंद-बूंद के हेतु कभी
बूंद-बूंद के हेतु कभी
तुझको तरसायेगी हाला
कभी हाथ से छिन जायेगा
तेरा यह मादक प्याला
पीने वाले साक़ी की मीठी
बातों में मत आना
मेरे भी गुण यों ही गाती
एक दिवस थी मधुशाला !
मैं मदिरालय के अंदर हूं
मैं मदिरालय के अंदर हूं
मेरे हाथों में प्याला
प्याले में मदिरालय बिंबित
करने वाली है हाला
इस उधेड़-बुन में ही मेरा
सारा जीवन बीत गया
मैं मदिरालय के अंदर या
मेरे अंदर मधुशाला !
अपने युग में सबको अनुपम
अपने युग में सबको अनुपम
ज्ञात हुई अपनी हाला
अपने युग में सबको अद्भुत
ज्ञात हुआ अपना प्याला
फिर भी वृद्धों से जब पूछा
एक यही उत्तर पाया
अब न रहे वे पीने वाले
अब न रही वह मधुशाला !