संघ और बीजेपी को एक दूसरे की जरूरत, भागवत और मोदी की मुलाकात से साफ हो गई स्थिति, समझिए पूरी बात

बीजेपी और आरएसएस के रिश्ते एक बार फिर से मजबूत हो रहे हैं। हाल ही में पीएम मोदी के नागपुर दौरे और संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात के बाद यह साफ हो गया। बीजेपी के लिए संघ से करीबी होना बेहद जरूरी है। वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में संघ और बीजेपी के रिश्तों को लेकर लेख लिखा है। वो कहती हैं, 11 साल बाद आरएसएस मुख्यालय पहुंचे पीएम मोदी की यह यात्रा इस बात का संकेत है कि बीजेपी के लिए संघ का समर्थन अब भी कितना अहम है। इस मुलाकात में दोनों पक्षों के बीच पुराने मतभेदों को दूर करने और भविष्य में एकसाथ काम करने पर सहमति बनी। यह घटना प्रमोद महाजन के उस बयान को भी सच साबित करती है, जिसमें उन्होंने 21 साल पहले कहा था कि बीजेपी में असली ताकत का फैसला संघ ही करता है।
2004 में बीजेपी नेता प्रमोद महाजन ने पत्रकारों के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था, "जो संघ तय करेगा, वही पार्टी में महत्वपूर्ण होगा।" उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अप्रत्याशित हार के बाद सत्ता से बाहर हो गई थी। इसके बाद संघ ने लालकृष्ण आडवाणी को मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ करने के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला किया, जिससे उनका राजनीतिक ग्राफ नीचे चला गया। वहीं, नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हुआ, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
मोदी और भागवत: एक लंबा रिश्ता
मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी, दोनों का पुराना रिश्ता है। दोनों हम उम्र भी हैं। इस साल सितंबर में दोनों 75 साल के हो जाएंगे। भागवत ने 2013 में मोदी को बीजेपी के पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। मोदी की पहली जीत के बाद उनके मंत्रिमंडल और आरएसएस नेताओं के बीच नियमित बैठकें होती थीं। हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों संगठनों के बीच तनाव की खबरें भी सामने आई थीं। 2024 के चुनावों में बीजेपी को 240 सीटें मिलीं, जो बहुमत से कम थीं, और संघ के समर्थन में कमी को इसका कारण माना गया।
क्या नागपुर दोरा सुलह का संदेश है?
मोदी की हालिया नागपुर यात्रा को सुलह का प्रतीक माना जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, यह मुलाकात पहले से तय थी और इसका मकसद बीजेपी-आरएसएस के रिश्तों को मजबूत करना था। पीएम ने कहा, "मैं एक स्वयंसेवक हूं और संघ के सामने झुकता हूं।" भागवत के साथ उनकी 20 मिनट की निजी बैठक के बाद दोनों हेडगेवार स्मृति मंदिर में नजर आए। मोदी ने आरएसएस को 'अक्षयवट वृक्ष' करार देते हुए इसे राष्ट्रीय संस्कृति का आधार बताया।
वाजपेयी से अलग थी यह यात्रा
2000 में वाजपेयी की नागपुर यात्रा के दौरान तत्कालीन सरसंघचालक के. सुदर्शन ने उनके साथ तनावपूर्ण रवैया अपनाया था। सुदर्शन ने वाजपेयी और आडवाणी से युवाओं के लिए रास्ता छोड़ने की सार्वजनिक मांग की थी। इसके उलट, मोदी और भागवत की मुलाकात सौहार्दपूर्ण रही। यह यात्रा इस बात का भी संकेत है कि बीजेपी को अपनी सफलता के लिए संघ की जरूरत अब भी बरकरार है।
चुनावी झटके के बाद नई शुरुआत
2024 के लोकसभा चुनावों में संघ ने बीजेपी के लिए पूरे जोश से काम नहीं किया था। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान ने भी तनाव बढ़ाया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी को अब संघ के मार्गदर्शन की जरूरत नहीं। हालांकि, इसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनावों में संघ ने पूरा समर्थन दिया, जिससे बीजेपी को शानदार जीत मिली। यह साबित करता है कि दोनों संगठन एक-दूसरे के लिए कितने जरूरी हैं।
बीजेपी का भविष्य पर संघ की नजर
संघ की एक बड़ी चिंता बीजेपी के अगले अध्यक्ष का चयन है। नड्डा का कार्यकाल खत्म हो चुका है और अभी तक कोई नाम तय नहीं हुआ। सूत्रों का कहना है कि पीएम मोदी ही संघ की सलाह से इस फैसले को अंतिम रूप देंगे। यह भी साफ है कि मोदी अपनी केंद्रीकृत शैली के बावजूद सरकार और पार्टी पर अपनी पकड़ बनाए रखेंगे।