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वसुंधरा राजे ने क्यों कहा- 'वनवास आता है तो जाता भी है', जानिए इसके पीछे के सियासी मायने

जयपुर. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. हाल के दिनों में उनके द्वारा दिए गए बयानों ने राजनीतिक गलियारों में मानों भूचाल सा ला दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का धौलपुर में रामकथा कार्यक्रम के दौरान दिया गया बयान “वनवास सभी के जीवन में कभी न कभी आता है, लेकिन यह भी सच है कि वनवास आता है तो जाता भी है”. यह सिर्फ धार्मिक संदेश नहीं, बल्कि गहरे राजनीतिक इशारों से भरा है. यह बयान 2024 का है, जब राजे को बीजेपी में किनारे किए जाने की चर्चाएं चरम पर थीं. लेकिन 2025 में भी उनकी सक्रियता और बयानों ने राजस्थान की सियासत में हलचल मचा रखी है. आइए समझते हैं, क्यों कहा, क्या मायने हैं और हाल की घटनाओं का क्या कनेक्शन है.

वसुंधरा राजे ने यह बात रामकथा के मंच से कही, जहां उन्होंने भगवान राम के वनवास का उदाहरण देकर धैर्य की सीख दी. हालांकि यह श्रद्धालुओं को संबोधित था, लेकिन गहराई में यह उनकी अपनी राजनीतिक स्थिति का प्रतिबिंब है. 2018 के बाद से राजे बीजेपी में ‘वनवास’ जैसी स्थिति में हैं. बीजेपी में राजे को साइडलाइन करने की चर्चाएं लंबे समय से हैं. 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उन्हें प्रमुख भूमिका नहीं दी. उन्हें सीएम फेस नहीं बनाया गया और भजनलाल शर्मा को कमान सौंपी गई. उनकी लोकप्रियता (खासकर राजपूत-जाट समुदायों में) अब भी मजबूत है, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें साइडलाइन कर दिया. कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास ने इसे ‘जबरन वनवास’ करार दिया और कहा कि बीजेपी दिग्गजों को सम्मान नहीं देती. राजे का बयान धैर्य और इंतजार का संदेश है. जैसे वे कह रही हों कि उनका राजनीतिक अलगाव अस्थायी है.

 

वापसी की तैयारी में जुटी हैं वसुंधरा राजे

वसुंधरा राजे का बयान बीजेपी के प्रति असंतोष को उजागर करने वाला जैसा प्रतीत होता है. राजस्थान में उनके पास 40-50 विधायकों का समर्थन माना जाता है. ‘वनवास जाता है’ कहकर वे पार्टी नेतृत्व पर तंज कस रही हैं कि समय का चक्र घूमेगा, और उनकी वापसी होगी. हालांकि यह 2028 चुनावों से पहले समर्थकों को एकजुट रखने की रणनीति भी हो सकती है. कांग्रेस यह कहकर भुनाने में लगी है कि बीजेपी में आंतरिक कलह है. हालांकि वसुधरा राजे अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया की परंपरा को जारी रखने की बता कहती आ रही हैं. उनका कहना है कि अडिग रहना है और झुकना भी नहीं है. हाल की चर्चाओं में, यह बयान राजे की ‘वापसी’ की अटकलों को हवा देता है, खासकर जब वे पीएम मोदी से मिलीं और कैबिनेट में अपने वफादारों की पैरवी की.

राजनीति में धैर्य से मिलती है जीत

राजे पहले भी इशारों में हमले कर चुकी हैं. 2025 में झालरापाटन में महाराणा प्रताप की प्रतिमा अनावरण दौरान पार्टी में विश्वासघात पर तंज कसते हुए कहा था ”बादल सूरज को छिपा सकते हैं, लेकिन ज्यादा देर तक नहीं”और सांप जहर उगलेगा ही”. वहीं अजमेर में सांवरलाल जाट की मूर्ति पर “इंसान कब बदल जाए, भरोसा नहीं” कहा. आगरा में आपातकाल पर सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि “बीजेपी मेरा घर है, यहां से अर्थी ही निकलेगी”. लेकिन नहीं झुकने का दावा किया. आपातकाल में उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया इंदिरा गांधी के सामने नहीं झुकीं थी. राजे कह रही हैं कि राजनीति में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन धैर्य से जीत मिलती है.

 

 

2025 में वसुंधरा राजे की बढ़ गई है सक्रियता

2025 में राजे की सक्रियता बढ़ी है. फरवरी में एक समर्थक ने उन्हें फिर सीएम बनाने की अपील की, तो राजे मुस्कुराईं. अप्रैल में पानी संकट पर अफसरों को फटकार लगाई और कहा कि “पीएम ने जल जीवन मिशन के लिए 42 हजार करोड़ दिए, हर पैसे का हिसाब दो.” यह राजस्थान में भाजपा की ही सरकार पर अप्रत्यक्ष हमला था, जिसे कांग्रेस ने हरसंभव भुनाने की कोशिश की. जुलाई में झालावाड़ स्कूल छत गिरने पर शिक्षा विभाग को जिम्मेदार ठहराया और राज्यव्यापी सेफ्टी ऑडिट की मांग की. वहीं अगस्त में पीएम मोदी से मुलाकात ने अटकलें बढ़ाईं. क्या कैबिनेट में उनके लोग आएंगे? हाल ही में एक धार्मिक बयान पर सियासी बवाल मचा, जहां चर्चाएं तेज है कि यह फिर से उनके ‘वनवास’ जैसे असंतोष का इशारा है. चर्चाएं तेज है कि जब उन्हें टॉप बीजेपी लीडर्स में शुमार किया जाता है, तो साईडलाइन करने की स्थिति क्यों आन पड़ी. जुलाई में एक वीडियो में कहा गया कि राजे ‘बैक इन एक्शन’ हैं, बड़ा पॉलिटिकल शिफ्ट आ सकता है.

 

 

आसानी से हार नहीं मानने वाली हैं वसुंधरा राजे

71 साल की वसुंधरा राजे हार राजनीतिक की माहिर खिलाड़ी हैं और इतनी आसानी से हार भी नहीं मानने वाली हैं. वसुंधरा राजे का ‘वनवास’ बयान राजस्थान बीजेपी में हलचल मचा रहा है, खासकर हाल के उपचुनावों में पार्टी की जीत के बाद. 71 साल की उम्र में भी वे सक्रिय हैं और राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखती हैं. अगर बीजेपी उन्हें अनदेखा करती रही, तो यह पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है. वसुंधरा राजे के हाल के बयान दिखाती है कि वे इशारों से लड़ रही हैं. साथ ही समर्थकों को जोड़े रखकर नेतृत्व पर दबाव बना रही हैं. बीजेपी के लिए यह चुनौती है, क्योंकि उनकी लोकप्रियता राज्य में अहम है. अगर अनदेखी जारी रही, तो 2028 से पहले कलह बढ़ सकती है. राजे का संदेश साफ है कि समय घूमेगा, वनवास खत्म होगा. राजस्थान में सियासत अब किस ओर जाएगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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