गांधी ने नहीं मनाया था आजादी का जशà¥à¤¨, दंग कर देगी राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ की ये हकीकत...
नई दिलà¥à¤²à¥€à¥¤ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की आजादी के संघरà¥à¤· को दिशा उसी दिन मिल गई थी, जब 1915 में गांधी जी दकà¥à¤·à¤¿à¤£ अफà¥à¤°à¥€à¤•à¤¾ से लौटे और अपने राजनीतिक गà¥à¤°à¥ गोपाल कृषà¥à¤£ गोखले की सलाह पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहले à¤à¤¾à¤°à¤¤ घूमा और बाद में 1919 में बिहार के चंपारण से जमीन पर आंदोलन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ की। दरअसल, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ महातà¥à¤®à¤¾ गांधी ने आजादी की लड़ाई को अपने अनूठे अंदाज और बेहद अलग आंदोलनों चाहे फिर वह सविनय अवजà¥à¤žà¤¾ आंदोलन हो या 1930 में नमक कानून तोड़ने के लिठकी गई दांडी यातà¥à¤°à¤¾, गांधी जी ने सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ की पूरी जंग को आर-पार का बना दिया।
लेकिन सबसे आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ की बात यह है कि 15 अगसà¥à¤¤ 1947 को मिली आजादी के जशà¥à¤¨ में न तो गांधी शरीक हà¥à¤ और न ही 14 अगसà¥à¤¤ को उनके शिषà¥à¤¯ पंडित नेहरू दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दिठगठà¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤·à¤£ में शामिल हà¥à¤à¥¤ à¤à¤¸à¥‡ में सवाल यह उठता है कि आखिर देश की आजादी के लिठअपना सबकà¥à¤› तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर देने वाले गांधी जी आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ देश की इतनी बड़ी उपलबà¥à¤§à¤¿ से दूर रहे और वे उस समय थे कहां?