गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° में सà¥à¤°à¥‹à¤‚ की अठखेलियों से à¤à¥‚मे रसिक
माठसरसà¥à¤µà¤¤à¥€ और अनà¥à¤¯ देवताओं-गंधरà¥à¤µà¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¿à¤¯ और दà¥à¤°à¥à¤²à¤ वादà¥à¤¯ यंतà¥à¤° रूदà¥à¤°à¤µà¥€à¤£à¤¾ की à¤à¤‚कार तो à¤à¥€à¤² में उठतीं लहरों सी अठखेलियाठकरती मीठी-मीठी धà¥à¤¨à¥‡à¤‚ और बà¥à¤²à¤‚द और मधà¥à¤° आवाज में घरानेदार गायिकी। साथ ही à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ राग-रागनियों के साथ समागम करतीं यूरोप के खूबसूरत देश नारà¥à¤µà¥‡ की लोक धà¥à¤¨à¥‡à¤‚। यहाठबात हो रही है गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° में आयोजित तानसेन समारोह में रविवार की सà¥à¤¬à¤¹ की सà¤à¤¾ की। नाद बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के साधकों ने इस सà¤à¤¾ में अपने गायन-वादन से रसिकों को मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ किया।
'तज रे अà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨......'
सà¥à¤° समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ तानसेन के सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° विलास खां दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाये गठराग 'विलासखानी तोड़ी' में पं सà¥à¤¹à¤¾à¤¸ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ ने जब अपनी à¤à¥€à¤² सी थरथराती आवाज में छोटा खà¥à¤¯à¤¾à¤² 'तज रे अà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨' का तीन ताल में गायन किया तो गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° घराने की गायकी से वातावरण गà¥à¤à¤œà¤¾à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हो उठा। इसी राग में à¤à¤• ताल में निबदà¥à¤§ बड़ा खà¥à¤¯à¤¾à¤² “अब मो पे छाय रहे” से अपने गायन की शà¥à¤°à¥‚आत हà¥à¤ˆà¥¤ पà¥à¤£à¥‡ से आये पं. सà¥à¤¹à¤¾à¤¸ जी तानसेन समà¥à¤®à¤¾à¤¨ से विà¤à¥‚षित पदà¥à¤®à¤à¥‚षण पंडित सी आर वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के सà¥à¤¯à¥‹à¤—à¥à¤¯ सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° हैं। समारोह में रविवार को तीसरी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ के रूप में पं. सà¥à¤¹à¤¾à¤¸ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ “खटराग” में बंदिश “बà¤à¤§à¤¾ समा सà¥à¤° राग लय ताल” का गायन किया गया। पं. सà¥à¤¹à¤¾à¤¸ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ ने अंत में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ à¤à¤œà¤¨ “à¤à¤• सूर चराचर छायो” गाकर रसिकों को मंतà¥à¤°-मà¥à¤—à¥à¤§ कर दिया।
“रसिया मà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾.....”
नई दिलà¥à¤²à¥€ के शà¥à¤°à¥€ मधà¥à¤ª मà¥à¤¦à¤—ल ने राग 'अहीर à¤à¥ˆà¤°à¤µ' गाया। राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ लोक संगीत पर आधारित इस बंदिश के बोल थे “रसिया मà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾”। इसी राग में शà¥à¤°à¥€ मà¥à¤¦à¤—ल ने छोटा खà¥à¤¯à¤¾à¤² “बेग-बेग आओ मंदिरवा” सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ राग “अलà¥à¤¹à¥ˆà¤¯à¤¾ बिलावल” में à¤à¤• बंदिश और तिरवट गाई।
रूदà¥à¤°à¤µà¥€à¤£à¤¾ से राग ललित पंचम में à¤à¤°à¥‡ मीठे मीठे सà¥à¤°
मà¥à¤‚बई से आये शà¥à¤°à¥€ सà¥à¤µà¥€à¤° मिशà¥à¤° ने राग 'ललित पंचम' से रà¥à¤¦à¥à¤°à¤µà¥€à¤£à¤¾ वादन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ की। आलाप गमक का सà¥à¤‚दर पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— वादन में सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ à¤à¤²à¤• रहा था। पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ धà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ गायक उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ जिया फरीदà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ डागर के शिषà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ सà¥à¤µà¥€à¤° मिशà¥à¤° ने अलाप जोड़ à¤à¤¾à¤²à¤¾ से वादन शà¥à¤°à¥‚ किया। उनके साथ पखावज पर शà¥à¤°à¥€ संजय पनà¥à¤¤ आगले ने संगत की।
नारà¥à¤µà¥‡ की लोक धà¥à¤¨à¥‹à¤‚ में डूबे संगीत रसिक
सà¥à¤‚दर-सà¥à¤‚दर à¤à¥€à¤², पहाड़ और हरियाली से परिपूरà¥à¤£ यूरोपीय देश नारà¥à¤µà¥‡ से आईं सà¥à¤¶à¥à¤°à¥€ à¤à¤¨à¥€ हॉयत ने वायोलिन से मिलते-जà¥à¤²à¤¤à¥‡ वादà¥à¤¯ यंतà¥à¤° “हारà¥à¤¡à¥‡à¤¨à¥à¤œà¤° फिडà¥à¤²” से अपने देश की लोक धà¥à¤¨à¥‡à¤‚ बजाकर समा बाà¤à¤§ दिया। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संगीत की à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ नारà¥à¤µà¥‡ के संगीत में राग तो नहीं होते मगर धà¥à¤¨ के लिये हारà¥à¤¡à¥‡à¤¨à¥à¤œà¤° को अलग-अलग सà¥à¤°à¥‹à¤‚ में मिलाते हैं, जिससे à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿-à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ के रागों की तरह वे सà¥à¤µà¤¤: ही राग सदृशà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं। à¤à¤¨à¥€ हॉयत ने नारà¥à¤µà¥‡à¤œà¤¿à¤¯à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में à¤à¤• लोकधà¥à¤¨ “दà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥à¤¸à¥€à¤¨” पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की। दà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥ का अरà¥à¤¥ सपना होता है। दरअसल नारà¥à¤µà¥‡ में अधिकांश समय अंधेरा रहता है। जाहिर है हॉयत का वादन सपनों को बयां कर रहा था।
पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ सà¤à¤¾ का आगाज़ धà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ गायन परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त तरीके से हà¥à¤†à¥¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ धà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ केनà¥à¤¦à¥à¤° के शà¥à¤°à¥€ अà¤à¤¿à¤œà¥€à¤¤ सà¥à¤–डाडे à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ में राग अहीर à¤à¥ˆà¤°à¤µ में गायन किया गया।