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चम्बल की चुनावी तस्वीर

चम्बल की चुनावी तस्वीर चेहरे और जातिगत आंकड़ों के आधार पर बदलती रही है. मतदाताओं ने मुरैना बिधानसभा सीट पर कभी एक दाल को पसंद नहीं किया है .वर्ष २०१८ और उपचुनाव २०२० को अपबाद कहा जा सकता है कि मतदाताओं ने दलबदलू उम्मीदवार को ख़ारिज करते हुए एक बार फिर पंजे का बटन दबाकर सबक सिखाने  का काम किया है .बतादें कि वर्ष २०१८ में कांग्रेस ने रघुराज कंसाना को टिकिट दिया और वे बड़े अंतर से चुनाव जीते ,मगर कांग्रेस के दल -बदल करने बालों में कंसाना भी शामिल थे ,जिस कारण कांग्रेस की सरकार गिरी .साथ ही उप चुनाव में भाजपा ने कंसाना को उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस के उम्मीदवार राकेश मावई के सामने वह पांच हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार गए .यानि मतदाताओं ने दल बदलू को वर्दाश्त नहीं किया और सड़क पर ला दिया .अब भाजपा किसे टिकिट दे इस बात का मंथन पार्टी में चल रहा है .कंसाना पर पार्टी दाव लगाएगी इसकी सम्भाबना कम है .चूँकि कांग्रेस छोड़ भाजपा में आये थे ,इस कारण उन्हें टिकिट दिया गया था .भाजपा एक -एक सीट पर उम्मीदवार चयन के लिए न केवल सर्वे करा रही है ,बल्कि सरकार का खुपिया तंत्र भी मतदाताओं की नब्ज टटोल रहा  है .बात कांग्रेस की करें तो कांग्रेस भी उम्मीदवार चयन के लिए सर्वे करा रही है .भोपाल में बने वॉर रूम में चुनाव के रणनीतिकार भी अपने कम में जुट गए हैं . कमलनाथ ने  सत्ता में वापसी के लिए टीम वर्क शुरू कर दिया है .

इस सीट पर बसपा भी जित चुकी है : मुरैना सीट पर बहुजन समज पार्टी का जोर भी रहा है ,ब्राह्मण उम्मीदवार न केवल जीते बल्कि दूसरे और तीसरे नंबर पर भी रही है .वर्ष २००८ के चुनाव में बसपा से परशुराम मुदगल ने कांग्रेस के सोवरन सिंह मावई को हराया था ,वहीँ २०१३ में  बसपा के उम्मीदवार रामप्रकाश राजोरिया दूसरे नम्बर पर रहे थे.साथ ही बलवीर दंडोतिया २०१८ में तीसरे स्थान पर रहे थे .इसके आलावा राजोरिया ने उपचुनाव में ४० हजार से अधिक वोट प्राप्त किये थे .इस तरह बसपा का भी जोर  इस सीट पर कायम है .

पिता -पुत्र के जीतने का भी है रिकॉर्ड : मुरैना बिधान सभा सीट पर कांग्रेस के पिता - पुत्र के जीतने का भी रिकॉर्ड है .कांग्रेस के सोवरन सिंह मावई वर्ष १९९३ में और पुत्र राकेश मावई ने २०२० में कांग्रेस के टिकिट पर जीत हांसिल कर एक रिकॉर्ड बनाया .

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