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प्राचीन काल में भिंडी ऋषि

 

प्राचीन काल में भिंडी ऋषि यहाँ पर आए तथा उन्होंने यहाँ पर तपस्या की, उनकी तपस्थली होने के कारण ही इस जिले का नाम भिंड रखा गया है.यहाँ पर कई बड़े-बड़े राजवंशों ने शासन किया था, जिनमें चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में नन्द वंश, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य वंश, 187 ईसा पूर्व में शुंग वंश, प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में नाग वंश तथा इनके बाद में यहाँ पर कुषाण, गुप्त, हूण, वर्धन, गुजरात प्रतिहार वंश फिर मुग़ल शासक तथा अंत में अंग्रेजों ने किया था.

मुगल काल के बाद : नवंबर 1805 में सिंधिया एवं कार्नवालिस प्रथम के साथ संपन्न हुई एक और संधि के तहत अंग्रेज़ों ने गिर्द गोहद, परगना भिंड और इसकी गढ़ियों सहित ग्वालियर और गोहद के गढ़ महाराजा दौलत राव सिंधिया (1784-1827) को सौंप दिए गए l यहाँ से भिंड जिले का इतिहास ग्वालियर के इतिहास के साथ मिल जाता है ।भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले 'बधवार' कहा जाता था.

डाकू ही नहीं, ऐतिहासिक धरोहरों से भी है जिले की पहचान, जानें किन वजहों से पिछड़ा रहा भिंड

मध्य प्रदेश का भिंड जिला पर्यटन संपदाओं से घिरा है. जोकि ऐतिहासिक धरोहरों और इतिहास को भी अपने आंचल में समेटे हुए है. लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी की वजह से यहां कभी पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला. हालांकि इन सभी पर्यटन संपदाओं के पिछड़ने और गुमनाम रहने के पीछे कई अहम कमियाँ रहीं, लेकिन अब प्रशासन का कहना है कि हम लगातार पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं, जल्द अटेर क्षेत्र में भव्य अटेर महोत्सव का आयोजन किया जाएगा.

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