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कुत्तों का आतंक: एक साल में 80 हजार लोग बने स्ट्रीट डॉग बाइट का शिकार, रोजाना ढाई सौ नए केस

ग्वालियर में आम लोग आवारा कुत्तों के कहर से आतंकित हैं। उनके दिमाग में बैठी यह दहशत अकारण भी नहीं है। क्योंकि आप यह आंकड़ा सुनकर चौंक पड़ेंगे कि ग्वालियर में बीते साल स्ट्रीट डॉग ने अस्सी हजार से ज्यादा सड़क पर चलते लोगों को अपना शिकार बनाया। अभी भी औसतन दो सौ से ढाई सौ से ज्यादा डॉग बाइट के शिकार रोज अस्पताल पहुंचते हैं और चिंता की बात ये है कि इनकी रोकथाम के लिए न तो अभी कोई कारगर व्यवस्था है और न ही इसको लेकर भविष्य की कोई प्लानिंग है।ग्वालियर शहर में आवारा स्ट्रीट डॉग का इतना आतंक है कि सड़कों पर चलना लोगों को दूभर पड़ रहा है। क्योंकि मोटे अनुमान के अनुसार, इस समय ग्वालियर की सड़कों पर 50 हजार से ज्यादा आवारा डॉग्स स्वछंद विचरण करते हैं और औसतन हर सात मिनट में एक राहगीर को अपना शिकार बनाते हैं। पिछले साल का ही आंकड़ा लें तो साल 2023 में ग्वालियर में 80,562 लोग डॉग बाइट के शिकार हुए। यह तो वे आंकड़े हैं, जो एंटीरेबीज लगवाने अस्पताल तक पहुंचे। लेकिन बड़ी संख्या में लोग सिर्फ नीम हकीम के सहारे ही इलाज करते हैं। उन्हें जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा और भी आगे पहुंच जाता है।

इन स्ट्रीट डॉग को पकड़ने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। लेकिन एक तो उसके पास न तो इसकी पर्याप्त व्यवस्था है और न अमला। निगम सूत्र बताते हैं कि उनके पास रोजाना एवरेज 20 से 25 शिकायतें आवारा स्ट्रीट डॉग के आतंक की आती हैं। हमारीं गाड़ी उन्हें पकड़ने जाती भी है, लेकिन जब तक हम पहुंचते हैं वे भाग जाते हैं। डॉग तो इतने चालाक हैं कि हमारी गाड़ी भी पहचानते हैं और उसे आते देख ही भाग निकलते हैं।

बंद पड़ा है एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोजेक्ट
स्ट्रीट डॉग की संख्या पर नियंत्रण के लिए यहां शुरू किया गया ग्वालियर निगम का एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोजेक्ट (एबीसी) सेंटर पिछले छह महीने से बंद पड़ा है। इसके कारण शहर में श्वान की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। लेकिन निगम को इसकी चिंता संभवत: नहीं है। यही कारण है कि छह महीने में नगर निगम एबीसी सेंटर चालू नहीं करा सका। हालांकि, अब निगम का कहना है कि श्चान की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए उनकी धर पकड़ शुरू की जाएगी और उन्हें उसी स्थान पर रखा जाएगा जहां पर एबीसी सेंटर संचालित होता था। हालात यह है कि लोग सीएम हेल्पलाइन तक पर भी शिकायत दर्ज करा  रहे हैं। लेकिन इन शिकायतों का निराकरण नहीं हो रहा है, इस कारण से लोगों में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
ग्वालियर जेएएच के अधीक्षक आरकेएस धाकड़ का कहना है कि जिले में डॉग बाइट के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। आमतौर पर रोजाना करीबन 100 लोग डॉग बाइट का शिकार होते हैं। लेकिन पिछले दिन तो यह संख्या और अधिक बढ़ गई, जेएच सहित शहर के अन्य अस्पतालों को मिलाकर प्रतिदिन 400 के करीब डॉग बाइट के मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही देहात इलाकों में भी डेढ़ सैकड़ा के करीब लोग डॉग बाइट का शिकार हुए हैं। यह काफी बड़ी संख्या है।
क्या कहना है डॉक्टर का
डॉ धाकड़ कहते हैं कि इससे दो तरफ का नुकसान है। एक तो मरीज को शारीरिक नुकसान होता है तो वहीं दूसरी ओर अस्पताल पर भी फाइनेंशियल दबाव बढ़ता है। क्योंकि डॉग बाइट के मरीज के इलाज पूरी तरह निशुल्क है और इसका इलाज काफी महंगा भी है, जिस कारण अन्य मरीजों के इलाज के लिए दवाओं के कोटे में कमी होती है। अधीक्षक आरकेएस धाकड़ ने कहा कि अभी तक दो मरीज रेबीज का शिकार होकर मृत्यु पा चुके हैं। रेबीज बीमारी का आज भी सही तरीके से इलाज नहीं है और जिसमें रेबीज के लक्षण आ जाते हैं, उसे बचा पाना मुश्किल होता है।

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